उत्तराखंड को देवताओं का निवास स्थान बताया जाता है ऐसा कहा जाता है कि यह स्वर्ग जाने का रास्ता है, प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन किए गए पापों से मुक्ति पाने के लिए इस पवित्र भूमि पर एक बार जरूर आना चाहिए, यह बातें कोई कल्पना में नहीं कही गई इसका प्रमाण सनातन धर्म के प्राचीन ग्रन्थ और धार्मिक पुस्तक है जिसमे इस बात लिखा गया है | यहाँ का हर पहाड़ी, नदी, तालाब और मंदिर हिन्दू धर्म ग्रंथो के किसी न किसी कथा में जरूर उल्लेखित किये गए है| उत्तराखंड में सभी देवी-देवता के प्राचीन मंदिर मिल जायेंगे लेकिन यहाँ सबसे महत्वपूर्ण भगवान् शिव के मंदिर है ऐसा कहा जाता है इन्हीं हिमालय पर्वत में शिव का निवास है पंचकेदार इस आस्था को प्रमाणित करता है पंच केदार भगवान शिव के पांच मंदिर है जो प्राचीन काल के अनुसार केदारखंड क्षेत्र के अंतर्गत आते है और वर्तमान में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के अंतर्गत आते है | पंचकेदार की स्थापना और विशेषता का उल्लेख महभारत में किया गया है |
महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र में युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव को अपने चचेरे भाइयों की हत्या के लिए आत्मग्लानि थी और उनके ऊपर भाइयों की हत्या का पाप भी लगा इस पाप से मुक्ति के लिए उन्हें भगवान शिव का दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहा| लेकिन भगवान शिव पांडवों द्वारा युद्ध में किये गए भीषण नरसंहार से रुष्ट थे इसलिए वे उनको को दर्शन नहीं देना चाहते थे| पांड्वो को जब यह पता चला की भगवान् शिव उनसे रुष्ट है तो उन्हें ढूंढने निकले लेकिन भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो गए वे कई जगह छिपते रहे इधर पांचो पांडव उनको कशी से ढूंढते हुए गुप्तकाशी पहुच गए|
जब भगवान शिव ने देखा कि पांडव उनको ढूंढते हुए यहां तक आ गए है तब उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और बैलों के एक झुंड में जा मिले लेकिन पांडव भाइयों को शक हो गया कि भगवान शिव यही है, पांडवों में सबसे विशालकाय भीम ने बैलों के जाने वाले रास्ते पर दो पहाड़ों के ऊपर खड़े हो गए उस पहाड़ी रस्ते बाकी सभी बैल तो निकल गए लेकिन भगवान शिव जिन्होंने उस समय बैल का रूप धारण कर रखा था वे वहा से नहीं गए, भगवान् शिव बैल के रूप में ही वहा से अंतर्ध्यान होने लगे यह देख कर भीम ने बैल के शरीर का पिछला हिस्सा पकड़ लिया इस तरह भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान होते हुए उस पुरे क्षेत्र में पंच जगह प्रकट हुए और हर जगह उनके शरीर का अलग – अलग हिस्सा दिखाई दिया इस तरह बैल के शरीर का पिछला हिस्सा केदारनाथ में, तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में मुख, मध्यमहेश्वर में नाभि और कल्पेश्वर में जटा देखि गई थी सबसे आखिर में पुरे शरीर के साथ भगवान् शिव नेपाल के पहाड़ी अंचल में प्रकट हुए वहाँ आज भगवान् शिव का पशुपतिनाथ का मंदिर है | ऐसा माना जाता है की इन सभी मंदिरों को पांडवों ने स्थापित किया था |
केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यहां के मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य ने कराया था वो ढांचा भी भूकंप की वजह से गिर गया था| वर्तमान में जो मंदिर का उपरी ढांचा है उसे बाद में बनाया गया है | केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे बना हुआ है यह मंदिर मन्दाकिनी के किनारे से कुछ फूट ऊपर एक चबूतरे पर बनाया गया मंदिर का निर्माण धूसर रंग के पत्थरों से किया गया है| मंदिर के अंदर भगवान शिव की आराधना ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है, मंदिर के अंदर ज्योर्तिलिंग के अलावा पांचो पांडव और द्रौपदी की मूर्ति भी बनी हुई है केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है |
तुंगनाथ मंदिर भी रुद्रप्रयाग जिले में चोपता नामक जगह पर है, यह मंदिर समुद्रतल 34600 मी. की उंचाई पर स्थित है| यह मंदिर चोपता से दो-तीन किमी की दूरी पर स्थित है, चोपता के बारे में कहा जाता है की यही वो स्थान है जहा माता पार्वती ने भगवान् शंकर से विवाह करने के लिए तपस्या की थी| यह मंदिर चंद्रशिला पर्वत के बीच में है इस मंदिर के पास ही एक रावण शीला है जिसके बारे में यह कहा जाता है की रावण ने भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए यही तपस्या की थी|
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रुद्रनाथ मंदिर गोपेश्वर चमोली से 18 किमी दूर स्थित है, यहाँ भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है| यह मंदिर गुफानुमा जगह पर स्थित है, इस मंदिर में शिव जी के अलावा विष्णु जी और पांचो पांडव और द्रौपदी की मूर्ति भी स्थापित है मंदिर के पास नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करने के पश्चात मंदिर में दर्शन करने जाते हैं |
मध्यमहेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग के मंसुना गाँव में स्थित है, एसा माना जाता है की जब भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो रहे थे तब यहाँ उनकी नाभि देखि गई थी| इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार भी कुछ नाभि जैसा ही है| मंदिर से दो – तीन किमी आगे ऊपर की ओर जाने पर बुढे मध्यमहेश्वर का मंदिर है यात्री यहाँ भी दर्शन करने जाते है| मंदिर तक जाने के लिए रुद्रप्रयाग से उखीमठ और उखीमठ से उनियाल तक गाड़ी की सुविधा है यहाँ से मंदिर 23 किमी दूर है जिसके लिए पैदल चल कर जाना पड़ता है |
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कल्पेश्वर मंदिर में भगवान् शिव के जटाओं की पूजा होती है, यह मंदिर कल्पगंगा नदी के पास स्थित | ऐसा मान्यता है की इसी स्थान पर ऋषि दुर्वासा ने कल्पवृक्ष के नीचे भगवान् शिव की आराधना की थी | यह मंदिर चमोली जिले के उर्गम घाटी में स्थित है,कल्पेश्वर पंचकेदारों में एक मात्र मंदिर है जो बारहों माह खुला रहता है|
पंचकेदार की यात्रा हर वर्ष अप्रेल माह से प्रारंभ होती है और नवम्बर तक रहती है, इनमें से चार मंदिर केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, और मध्यमहेश्वर मदिर साल में 6 माह के लिए खुलते है बाकी के 6 माह यह पूरा क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है इसलिए यहाँ दर्शन नहीं हो पता है| कल्पेश्वर मंदिर 12 माह खुला रहता है| पंचकेदार की यात्रा के लिए दिल्ली से हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए ट्रेन की सुविधा है ऋषिकेश और हरिद्वार से रुद्रप्रयाग और चमोली के लिए बस की सुविधा है जो लोग निजी वाहन से जाना कहते है वह उस से भी जा सकते है |
ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग और गौरी कुण्ड होते हुए 18 किमी पैदल चढ़ाई करने के बाद केदारनाथ मंदिर के दर्शन होते है | केदारनाथ से वापिस आते हुए गौरीकुंड, सोनप्रयाग, गुप्तकाशी होते हुए कुण्ड के बाद उखीमठ आता है यहाँ से उनियान और यहाँ से 23 किमी पैदल चलकर मध्यमहेश्वर मंदिर आता है |
उनियान से चोपता के लिए गाड़ी की सुविधा है चोपता से तुंगनाथ का मंदिर साढ़े तीन किमी दूर है यहाँ पैदल यात्रा द्वारा पहुंचा जाता है| चोपता से बस या किसी भी छोटी गाड़ी द्वार गोपेश्वर जाने की सुविधा है यहाँ से गोपेश्वर दो-तीन घंटे की यात्रा है, यहाँ से रुद्रनाथ जाने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती है जो सगर गाँव से लिती बग्याल, पनार बगयाल, पित्रधर होते हुए रुद्रनाथ जाता है| रुद्रनाथ से ही कल्पेश्वर जाने के लिए ह्लेंग से उर्गम घाटी होते हुए जा सकते है |
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